बड़े-बड़ों की ये हस्ती उतार देती है - डॉ. ज़िया उर रहमान जाफरी

बड़े-बड़ों की ये हस्ती उतार देती है

बड़े-बड़ों की ये हस्ती उतार देती है
ग़रीबी बाप की पगड़ी उतार देती है

न जाने क्यों ये मेरा दिल धड़कने लगता है
वो जब भी हाथ की चूड़ी उतार देती है

कभी अदा, कभी आंखें कभी नज़र दे कर
ये ऐसा क़र्ज़ है लड़की उतार देती है

अमीरी फिरती है मोटा बदन बनाए हुए
ग़रीबी जिस्म की हड्डी उतार देती है

किया जो प्यार तो नस्लें भी देख लीं मैंने
ये वो खता है जो बस्ती उतार उतार देती है

ज़रा करीब मेरे पास और आते हुए
वो अपने हाथ की मेंहदी उतार देती है

बड़े बुज़ुर्गों की ये बात याद है अब भी
बहुत हो खांसी तो हल्दी उतार देती है - डॉ. ज़िया उर रहमान जाफरी


bado-bado ki ye hasti utaar deti hai

bado-bado ki ye hasti utaar deti hai
garibi baap kio pagadi utaar deti hai

na jane kyon ye mera dil dhadkane lagta hai
wo jab bhi hath ki chudhi utaar deti hai

kabhi ada, kabhi aankhe kabhi nazar de kar
ye aisa karz hai ladki utaar deti hai

amiri firti hai mota badan banaye hue
garibi jism ki haddi utaar deti hai

kiya jo pyar to nasle bhi dekh li maine
ye wo khata hai jo basti utaar deti hai

zara kareeb mere paas aur aate hue
wo apne haath ki mehandi utaar deti hai

bade bujurgon k ye baat yaad hai ab bhi
bahut ho khasi to haldi utaar deti hai - Dr. Zia Ur Rehman Jafri

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