ज़रा गिनती में आ जाएँ तो सब को भूल जाते हैं - देवेश दीक्षित

ज़रा गिनती में आ जाएँ तो सब को भूल जाते हैं

ज़रा गिनती में आ जाएँ तो सब को भूल जाते हैं
बुलंदी के नशे में लोग रब को भूल जाते हैं

नये इन धनकुबेरों में यही तो खोट होता है
ज़रा-सी शोहरतें पाकर ये ढब को भूल जाते हैं

हमारे पास आओ और कुछ हमसे हँसो बोलो
तुम्हारे साथ हम ग़म के सबब को भूल जाते हैं

बड़े बूढ़ों की कुछ तालीम जिनको मिल नहीं पाती
वही बच्चे बड़े होकर अदब को भूल जाते हैं

तेरे आगोश में यूँ तृप्ति का एहसास होता है
कसम से देव' जैसे हर तलब को भूल जाते हैं - देवेश दीक्षित देव

Zara ginti me aa jaye to sab ko bhul jate hai

Zara ginti me aa jaye to sab ko bhul jate hai
bulandi ke nashe me log rab ko bhul jate hai

naye in dhankubero me yahi to khot hota hai
jara-si shohrate pakar ye dhab ko bhul jate hai

hamare paas aao aur kuchh hamse hanso bolo
tumhare sath ham gham ke sabab ko bhul jate hai

bade budho ki kuchh taleem jinko mil nahi pati
wahi bachhe bade hokar adab ko bhul jate hai

tere aagosh me yun tripti ka ehsas hota hai
kasam se 'dev' jaise har talab ko bhul jate hai - Devesh Dixit Dev

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