मत कहो, आकाश में कुहरा घना है - दुष्यंत कुमार

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से, क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।

पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।

दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है । - दुष्यंत कुमार


mat kaho, aakash me kuhra ghana hai

mat kaho, aakash me kuhra ghana hai
yah kisi ki vyktigat aalochana hai

sury hamne bhi nahi dekha subah se
kya karoge, sury ka kya dekhna hai

is sadak par is kadar kichad bichhi hai
har kisi ka paanv ghutno tak sana hai

paksh aur pratipaksh sansad me mukhar hai
baa itni hai ki koi pool bana hai

rakt varsho se naso me khaolta hai
aap kahte hai kshanik uttejna hai

ho gai har ghaat par puri vyvstha
shouk se dube jise bhi dubna hai

dosto! ab manch par suvidha nahi hai
aajkal nepathy me sambhawana hai - Dushyant Kumar

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