जिनको समझा नहीं अपने क़ाबिल कभी
ग़ज़ल- 212 212 212 212अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
जिनको समझा नहीं अपने क़ाबिल कभी।
आज बैठे हैं सर पे हमारे वही।।
सबसे आगे थे हम अब हैं पीछे खड़े।
चाल ऐसी सियासी सभी ने चली।।
रहनुमा कोई अपना हमारा कहाँ।
एक चम्मच हैं हम अब नही तश्तरी।।
आग नफ़रत की ऐसी लगी है यहाँ।
जो थे अपने कभी बन गए अजनबी।।
ज़ुल्म सहते रहे फिर भी हँसते रहे।
सब पे करते यक़ीं बस यही है कमी।।
इस सियासत में कितनी पकड़ अपनी है।
झाँक कर देखो दिल क्या है इज़्ज़त बची।।
शान झूठी 'निज़ाम' अब दिखाओ न तुम।
नस्ल मिट जाएगी जो ये हालत रही।। - निज़ाम फतेहपुरी
jinko samjha nahi apne qabil kabhi
jinko samjha nahi apne qabil kabhiaaj baithe hai sar pe hamare wahi
sabse aage the ham ab hai piche khade
chaal aisi siyasi sabhi ne chali
rahnuma koi apna hamara kahan
ek chammach hai ham ab nahi tashtari
aag nafrat ki aisi lagi hai yahan
jo the apne kabhi ban gaye ajnabi
zulm sahte rahe phir bhi hanste rahe
sab pe karte yakeen bas yahi hai kami
is siyasat me kitni pakad apni hai
jhaank kar dekho dil kya hai ijjat bachi
shaan jhuthi 'Nizam' ab dikhao n tum
nasl mit jayegi jo ye haalat rahi - Nizam Fatehpuri