दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैंकितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
दुनिया-ए-दिल तबाह किए जा रहा हूँ मैं
सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किए जा रहा हूँ मैं
फ़र्द-ए-अमल सियाह किए जा रहा हूँ मैं
रहमत को बे-पनाह किए जा रहा हूँ मैं
ऐसी भी इक निगाह किए जा रहा हूँ मैं
ज़र्रों को मेहर-ओ-माह किए जा रहा हूँ मैं
मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़्मत को चार चाँद
ख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ मैं
दफ़्तर है एक मानी-ए-बे-लफ़्ज़-ओ-सौत का
सादा सी जो निगाह किए जा रहा हूँ मैं
आगे क़दम बढ़ाएँ जिन्हें सूझता नहीं
रौशन चराग़-ए-राह किए जा रहा हूँ मैं
मासूमी-ए-जमाल को भी जिन पे रश्क है
ऐसे भी कुछ गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
तन्क़ीद-ए-हुस्न मस्लहत-ए-ख़ास-ए-इश्क़ है
ये जुर्म गाह गाह किए जा रहा हूँ मैं
उठती नहीं है आँख मगर उस के रू-ब-रू
नादीदा इक निगाह किए जा रहा हूँ मैं
गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़
काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं
यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
मुझ से अदा हुआ है 'जिगर' जुस्तुजू का हक़
हर ज़र्रे को गवाह किए जा रहा हूँ मैं - जिगर मुरादाबादी
मायने
सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह = आँखों और आहो की चालाकी, फ़र्द-ए-अमल = काम करने की सूची, मेहर-ओ-माह = सूरज और चाँद, अज़्मत = सम्मान, मानी-ए-बे-लफ़्ज़-ओ-सौत = शब्द या ध्वनि के बिना अर्थ, चराग़-ए-राह = रास्ता दिखाने वाली रोशनी, तन्क़ीद-ए-हुस्न = सौंदर्य की आलोचना, मस्लहत-ए-ख़ास-ए-इश्क़ = प्यार में समझदारी, नादीदा = अनदेखा,
dil mein kisi ke rah kiye ja raha hun main
dil mein kisi ke rah kiye ja raha hun mainkitna hasin gunah kiye ja raha hun main
duniya-e-dil tabah kiye ja raha hun main
sarf-e-nigah-o-ah kiye ja raha hun main
fard-e-amal siyah kiye ja raha hun main
rahmat ko be-panah kiye ja raha hun main
aisi bhi ek nigah kiye ja raha hun main
zarron ko mehr-o-mah kiye ja raha hun main
mujh se lage hain ishq ki azmat ko chaar chand
khud husn ko gawah kiye ja raha hun main
daftar hai ek mani-e-be-lafz-o-saut ka
sada si jo nigah kiye ja raha hun main
aage qadam badhaen jinhen sujhta nahin
raushan charagh-e-rah kiye ja raha hun main
masumi-e-jamal ko bhi jin pe rashk hai
aise bhi kuchh gunah kiye ja raha hun main
tanqid-e-husn maslahat-e-khas-e-ishq hai
ye jurm gah gah kiye ja raha hun main
uthti nahin hai aankh magar us ke ru-ba-ru
nadida ek nigah kiye ja raha hun main
gulshan-parast hun mujhe gul hi nahin aziz
kanton se bhi nibah kiye ja raha hun main
yun zindagi guzar raha hun tere baghair
jaise koi gunah kiye ja raha hun main
mujh se ada hua hai 'jigar' justuju ka haq
har zarre ko gawah kiye ja raha hun main - Jigar Moradabadi