झूठे सपनों के छल से निकल - शंकर शैलेन्द्र

झूठे सपनों के छल से निकल

झूठे सपनों के छल से निकल
चलती सड़कों पर आ!
अपनों से न रह यों दूर-दूर
आ क़दम से क़दम मिला!

हम सबकी मुश्किलें एक सी हैं, ये भूख, रोग, बेकारी,
कुछ सोच कि सब कुछ होते हुए हम क्यों बन चले भिखारी,
क्यों बाँझ हो चली यह धरती, अंबर क्यों सूख चला?

इस जग में पलते हैं अकाल, है मौत की ठेकेदारी,
सड़कों पर पैदा हुए और सड़कों पर मरे नर-नारी,
लूटी जिसने बच्चों की हँसी, उस भूत का भूत भगा!

यह सच है रस्ता मुश्किल है, मंज़िल भी पास नहीं,
पर हम क़िस्मत के मालिक हैं, क़िस्मत के दास नहीं,
मज़दूर हैं हम, मजबूर नहीं, मर जाएँ जो घोट गला!

तू औ’ मैं हम जैसे अनगिन इस बार अगर मिल जाएँ,
तोपों के मुँह फिर जाएँ, ज़ुल्म के सिंहासन हिल जाएँ,
ओ जीते जी जलने वाले, अंदर भी आग जला! - शंकर शैलेन्द्र


jhute sapno ke chhal se nikal

jhute sapno ke chhal se nikal
chalti sadko par aa!
apno se n rah yon door-door
aa kadam se kadam mila

ham sabki mushkile ek si hai, ye bhukh, rog, bekari,
kuch soch ki sab kuch hote hue ham kyon ban chale bikhari
kyon baanjh ho chali yah dharti, ambar kyon sukh chala?

is jag me pahle hai akal, hai mout ki thekedari,
sadko par paida hue aur sadko par mare nar-nari,
luti jisne bachcho ki hansi, us bhoot ka bhoot bhaga!

yah sach hai rasta mushkil hai, manzil bhi paas nahi,
par ham kismat ke malik hai, kismat ke daas nahi,
majdoor hai ham, majboor nahi, mar jaye jo ghot gala,

tu auR mai ham jaise angin is baar agar mil jaye
topo ke munh phir jayeN, zulm ke sinhasan hil jayen
o! jeete ji jalne wale, andar bhi aag jala - Shankar Shailendra
झूठे सपनों के छल से निकल चलती सड़कों पर आ

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