मेरी मुट्ठी से ये बालू सरक जाने को कहती हैं
मेरी मुट्ठी से ये बालू सरक जाने को कहती हैये ज़िन्दगी भी अब मुझसे थक जाने को कहती है
मैं अपनी लड़खड़ाहट से परेशान हूँ मगर पोती
मेरी ऊँगली पकड़ के दूर तक जाने को कहती है
जिसे हम ओढ़ के निकले थे आग़ाज़े जवानी में
वो चादर ज़िन्दगी की अब मसक जाने को कहती है
कहानी ज़िन्दगी की क्या सुनाये अहल-ए-महफ़िल को
शकर घुलती नहीं और खीर पक जाने को कहती है - मुनव्वर राना
meri mutthi se ye balu sarak jane ko kahti hai
meri mutthi se ye balu sarak jane ko kahti haiye zindagi bhi ab mujhse thak jane ko kahti hai
mai apni ladkhadahat se pareshan hun magar poti
meri ungali pakad ke door tak jane ko kahti hai
jise ham odh ke nikle the aaghaze jawani me
wo chadar zindagi ki ab masak jane ko kahti hai
kahani zindgi ki kya sunaye ahal-e-mahfil ko
shakkar ghulati nahi aur kheer pak jane ko kahti hai - Munawwar Rana