खुली फ़िज़ाओं में छाई ये गर्द क्यों है - खुदेजा खान

खुली फ़िज़ाओं में छाई ये गर्द क्यों है

खुली फ़िज़ाओं में छाई ये गर्द क्यों है
आग कही दबी है, मौसम सर्द क्यों है

जितने संगदिल है ज़िन्दगी के मरहले
दिल की मिटटी उतनी नर्म क्यों है

ज़रा-सी बात पर उखड जाते है लोग
ज़माने की हवा इतनी गर्म क्यों है

खामोश आसमां के सीने में यकायक
क्यों छायी घटा, चमकी ये बर्क़ क्यों है

हर सूं एक खलिश-सी बढ़ रही है
आखिर इंसां इतना कमज़र्फ क्यों है

उथले दायरो में सिमटा हुआ आदमी
अपनी ही दुनिया में खुदगर्ज़ क्यों है

आदम की औलाद है जब सारा जहाँ
क़ौम के नाम पर ये फर्क क्यों है - खुदेजा खान


khuli fizaon me chhayi ye gard kyon hai

khuli fizaon me chhayi ye gard kyon hai
aag kahi dabi hai, mousam sard kyon hai

jitne sangdil hai zindagi ke marhale
dil ki mitti utni narm kyon hai

zara-si baat par ukhad jaate hai log
zamane ki hawa itni garm kyon hai

khamosh aasmaaN ke seene me yakayak
kyo chhayi ghata, chamaki ye barq kyo hai

har sooN ek khalis-si badh rahi hai
aakhir insaaN itna kamzarf kyon hai

uthale dayaro me simta hua aadmi
apni hi duniya me khudgarz kyon hai

aadam ki aulaad hai jab sara jahaN
qaum ke naam par ye farq kyon hai - Khudeja Khan

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post