घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में - क़ैसर-उल जाफ़री

घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में

घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में

काँटों पे चले लेकिन होने न दिया ज़ाहिर
तलवों का लहू धोया छुप छुप के अकेले में

ऐ दावर-ए-महशर ले देख आए तिरी दुनिया
हम ख़ुद को भी खो बैठे वो भीड़ थी मेले में

ख़ुशबू की तिजारत ने दीवार खड़ी कर दी
आँगन की चमेली में बाज़ार के बेले में - क़ैसर-उल जाफ़री


Ghar laut ke royenge maaN baap akele me

Ghar laut ke royenge maaN baap akele me
mitti ke khilaune bhi saste n the mele me

kaanto pe chale lekin hone n diya zahir
talvo ka lahu dhoya chhup chhup ke akele me

ae daawar-e-mahshar le dekh aaye tiri duniya
ham khud ko bhi kho baithe wo bheed thi mele me

khushboo ki tijarat ne deewar khadi kar di
aangan ki chameli me bazar ke bele me - Qaisarul Jafri

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