दिल ही दिल में घुट के रह जाऊँ ये मेरी ख़ू नहीं - ख़ावर रिज़वी

दिल ही दिल में घुट के रह जाऊँ ये मेरी ख़ू नहीं

दिल ही दिल में घुट के रह जाऊँ ये मेरी ख़ू नहीं
आज ऐ आशोब-ए-दौराँ मैं नहीं या तू नहीं

संग की सूरत पड़ा हूँ वक़्त की दहलीज़ पर
ठोकरों में ज़िंदगी है आँख में आँसू नहीं

शब ग़नीमत थी कि रौशन थे उम्मीदों के ख़ुतूत
दिन के सहरा में कोई तारा कोई जुगनू नहीं

चार जानिब ये सजे चेहरे हैं या काग़ज़ के फूल
रंग के जल्वे तो हैं लेकिन कहीं ख़ुश्बू नहीं

तेरी रहमत का नहीं हर चंद मैं मुंकिर मगर
सर पे जो चढ़ कर न बोले वो कोई जादू नहीं

मस्लहत है जिन का मस्लक वो मिरे भाई कहाँ
जो न उट्ठें मेरे दुश्मन पर मिरे बाज़ू नहीं - ख़ावर रिज़वी
मायने
आशोब-ए-दौराँ = शान्ति भंग करने वाला, ख़ुतूत = खत, मुंकिर = मना करने वाला / नास्तिक, मस्लहत = परामर्श, मस्लक = राह


dil hi dil me ghut ke rah jaaun ye meri khoon nahi

dil hi dil me ghut ke rah jaaun ye meri khoon nahi
aaj ae aashob-e-doura me nahi ya tu nahi

sang ki soorat pada hun waqt ki dahleej par
thokro me zindagi hai aankh me aansu nahi

shab ganimat thi ki roushan the ummido ke khutut
din ke sahra me koi taara koi jugnu nahi

chaar janib ye saje chehre hai ya kaaghaz ke phool
rang ke jalve o hai lekin kahi khushboo nahi

teri rahmat ka nahi har chand me munkir magar
sar pe jo chadh kar n bole wo koi jadu nahi

maslahat hai jin ka maslak wo mire bhaai kahan
jo n utthe mere dushman par mire bajoo nahi - Khawar Rizvi

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post