शायर बहुत हुए हैं जो अख़बार में नहीं
ग़ज़ल- 221 2121 1221 212शायर बहुत हुए हैं जो अख़बार में नहीं।
ऐसी ग़ज़ल कहो जो हो बाज़ार में नहीं।।
दिल से मिटा के नफ़रतें मिलकर रहो सदा।
जो लुत्फ़ प्यार में है वो तकरार में नहीं।।
अपनी कमी कहें की ये क़िस्मत का खेल है।
साहिल पे कश्ती डूबी है मझधार में नहीं।।
पहचान होती वीरों की मैदान-ए-जंग में।
जो मर्द है वो भागता शलवार में नहीं।।
आकर चले गए हैं सिकंदर बहुत यहाँ।
तुम चीज़ क्या अमर कोई संसार में नहीं।।
माया का मोह छोड़ के तू देख तो ज़रा।
जो है मज़ा फ़क़ीरी में परिवार में नहीं।।
जिस ताज पर निज़ाम तुझे इतना नाज़ है।
वो इक जगह रहा किसी दरबार में नहीं।। -निज़ाम फतेहपुरी
shayar bahut hue hai jo akhbaar me nahin
shayar bahut hue hai jo akhbaar me nahinaisi ghazal kaho jo ho bazar me nahin
dil se mita ke nafrate milkar raho sada
jo lutf pyar me hai wo takraar me nahin
apni kami kahe ki ye kismat ka khel hai
sahil pe kashti dubi hai majhdaar me nahin
pahchan hoti vero ki maidan-e-jung me
jo mard hai wo bhagta shalwar me nahin
aakar chale gaye hai sikandar bahut yahaN
tum chee kya amar koi sansaar me nahin
maya ka moh chhod ke tu dekh to zara
jo hai maza fakiri me pariwar me nahin
jis taaj par Nizam tujhe itna naaz hai
wo ik jagah raha kisi darbaar me nahin - Nizam Fatehpuri