मैं शायर हूँ दिल का जलाया हुआ
ग़ज़ल- 122 122 122 12अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊ
मैं शायर हूँ दिल का जलाया हुआ।
किसी नाज़नीं का सताया हुआ।।
वो बचपन के दिन भी थे कितने हसीं।
था बाहों में कोई समाया हुआ।।
है पहचान भी अब मेरी कुछ नहीं।
हरफ़ हूँ ग़लत इक मिटाया हुआ।।
कभी भूल से जो लिखा था गया।
अभी तक है आँखों में छाया हुआ।।
हुए ग़ैर वो ग़ैर अपने हुए।
अंधेरे में साथी न साया हुआ।।
नहीं मिलने देता कोई अब हमे।
जमाने ने है ज़ुल्म ढाया हुआ।।
जो था कमसिनी में तेरा ऐ निज़ाम।
जवानी में आकर पराया हुआ।। - निज़ाम फतेहपुरी
मायने
हरफ = अक्षर
mai shayar hun dil ka jalaya hua
mai shayar hun dil ka jalaya huakisi nazneeN ka sataya hua
wo bachpan ke din bhi the kitne haseeN
tha baho me koi samaya hua
hai pahchaan bhi ab meri kuch nahi
haraf hun galat ek mitaya hua
kabhi bhul se jo likha tha gaya
abhi tak hai aankho me chhaya hua
hue gair wo, gair apne hue
andhere me sathi n saya hua
nahi milne deta koi ab hame
jamane ne hai zulm dhaya hua
jo tha kamsini me tera ae Nizam
jawani me aakar paraya hua - Nizam Fatehpuri