अश्कों में डूब कर भी क्या मैंने पा लिया था - रचना निर्मल

अश्कों में डूब कर भी क्या मैंने पा लिया था दरिया अज़ाब का इक मुझ में समा रहा था

अश्कों में डूब कर भी क्या मैंने पा लिया था

अश्कों में डूब कर भी क्या मैंने पा लिया था
दरिया अज़ाब का इक मुझ में समा रहा था

उसको हज़ार नख़रे सह के बुला भी लेते
पर अब वो दिल कहाँ था जो उसको चाहता था

जाँ हो चुकी थी ख़स्ता आफ़त गले पड़ी थी
इक नाग ख़्वाहिशों का रह रह के डस रहा था

सब बेअसर दुआएँ झोली में रो रहीं थीं
था शह्र पत्थरों का जिसमें वो जा बसा था

नादानियाँ तो देखो इस दिलजले की यारो
दीवार अपने घर की ख़ुद बढ़ के ढा रहा था

हम कितना और झुकते इस ज़िन्दगी के आगे
हर बात पर थे नख़रे रस्ता भी तो जुदा था

हासिल न रोशनी यूँ खुर्शीद को हुई थी
लड़कर अँधेरों से ही वो अर्श पर दिखा था - रचना निर्मल


ashqo me dub kar bhi kya maine pa liya tha

ashqo me dub kar bhi kya maine pa liya tha
dariya ajaab ka ik mujh me sama raha tha

usko hajar nakhre sah ke bula bhi lete
par ab wo dil kahaN tha jo usko chahta tha

jaan ho chuki thi khasta aafat gale padi thi
ik naag khwashisho ka rah rah ke das raha tha

sab beasar duaae jholi me ro rahi thi
tha shahar pattharo ka jisme wo ja basa tha

nadaniyan to dekho is diljale ki yaaro
deewar apne ghar ki khud badh ke dhaa raha tha

ham kitna aur jhukte is jindgi ke aage
har baat par the nakhre rasta bhi to juda tha

hasil n roshni yun khurshid ko hui thi
ladkar andhero se hi wo arsh par dikha tha - Rachna Nirmal

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