उठ समाधि से ध्यान की उठ चल - जॉन एलिया

उठ समाधि से ध्यान की उठ चल उस गली से गुमान की उठ चल

उठ समाधि से ध्यान की उठ चल

उठ समाधि से ध्यान की, उठ चल
उस गली से गुमान की, उठ चल

मांगते हो जहाँ लहू भी उधार
तुने वां क्यों दूकान की, उठ चल

बैठ मत एक आस्तान पे अभी
उम्र है यह उठान की, उठ चल

किसी बस्ती का हो न वाबस्ता
सैर कर इस जहाँ की, उठ चल

जिस्म में पाँव है अभी मौजूद
जंग करना है जान की, उठ चल

तू है बेहाल और यहाँ साजिश
है किसी इम्तेहान की, उठ चल

है मदारो में अपने सय्यारे
ये घडी है अमान की, उठ चल

क्या है परदेस को देस कहाँ
थी वह लुकनत जुबां की, उठ चल

हर किनारा खुर्म मौज थे
याद करती है बान की, उठ चल
- जॉन एलिया
मायने
मदारो में सय्यारे = गृह सारे मददगार है अभी, लुक्नत = हकलाहट


Uth Samaadhi Se Dhyaan Ki, Uth Chal

Uth Samaadhi Se Dhyaan Ki, Uth Chal
Is Gali Se Gumaan Ki, Uth Chal

Maangte Ho Jahan Lahoo Bhi Udhaar
Tu Ne Waan Kyun Dukaan Ki, Uth Chal

Baith Mat Ek Aastaan Pe Abhi
Umr Hai Yeh Uthaan Ki, Uth Chal

Kisi Basti Ka Ho Na Waabastaa
Sair Kar Is Jahaan Ki, Uth Chal

zism me paanv hai abhi maujud
jung karna hai jaan ki, Uth Chal

Tu Hai Behaal Aur Yahan Saazish
Hai Kisi Imtehaan Ki, Uth Chal

Hai madaaron mein apne sayyare
Ye Ghadi Hai Amaan Ki, Uth Chal

kya hai pardes ko des kahan
thi wah luknat zubaan ki, uth chal

har kinara khurm mouz the
yaad karti hai baan ki, uth chal
- Jaun Elia

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