सन्नाटा (नज़्म) - मखदूम मोहिउद्दीन

सन्नाटा (नज़्म) - मखदूम मोहिउद्दीन

कोई धडकन
न कोई चाप
न संचल
न कोई मौज
न हलचल
न किसी सांस की गर्मी
न बदन
ऐसे सन्नाटे में इक आध तो पत्ता खड़के
कोई पिघला हुआ मोती
कोई आसू
कोई दिल
कुछ भी नहीं
कितनी सुनसान है है ये राहगुज़र
कोई रुखसार तो चमके,
कोई बिजली तो गिरे |
- मखदूम मोहिउद्दीन


Sannata

koi dhadkan
n koi chaap
n sanchal
n koi mouj
n halchal
n kisi saans ki garmi
n badan
aise sannate me ik aadh to patta khadke
koi pighla hua moti
koi aasu
koi dil
kuch bhi nahi
kini sunsan hai ye rahguzar
koi rukhsar to chamke,
koi bijli to gire
- Makhdum Mohiuddin
सन्नाटा (नज़्म) - मखदूम मोहिउद्दीन

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