पर नोच परिंदों के परवाज़ की दावत है - अज़ीज़ आजाद

पर नोच परिंदों के परवाज़ की दावत है यह कैसी नवाजिश है यह कैसी सखावत है

पर नोच परिंदों के परवाज़ की दावत है

पर नोच परिंदों के परवाज़ की दावत है
यह कैसी नवाजिश है यह कैसी सखावत है

कुछ गौर करो यारो शब्दों की शरारत पर
साजिश तो नहीं जिसका अब नाम सियासत है

ज़ख्मो की मसीहाई नाख़ून किये जाएँ
यह कैसा मदावा है यह कैसी हिफाज़त है

इस दौरे-हवादिस में क्या चीज़ है जीना भी
हर रूह में बैचेनी, हर सांस अलामत है

तेवर के बदलते ही आँखे न चली जाएँ
कमजोर की पलकों का उठना भी बगावत है - अज़ीज़ आजाद
मायने
नवाजिश = मेहरबानी/दयालुता, सखावत = दोस्ती, लामत = पहचान, मदावा = इलाज, दौरे-हवादिस = हादसों के दौर में


Par noch parindo ke parwaz ki daawat hai

Par noch parindo ke parwaz ki daawat hai
yah kaisi nawajish hai, yah kaisi sakhawat hai

kuch gour karo yaaro shabdo ki sharat par
saajish to nahi jiska ab naam saiyasat hai

zakhmo ki masihai naakhun kiye jaaye
yah kaisa madavaa hai yah kaisi hifazat hai

is doure-hawadis me kya cheez hai jeena bhi
har ruh me baicheni, har saans alamat hai

tewar ke badlate hi aankhe n chali jaaye
kamjor ki palko ka uthna bhi bagawat hai - Aziz Azad

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