फिर शहर में आये है सितमगर, तो हमें क्या
सडको पे है सन्नाटो के लश्कर, तो हमें क्या
हमने तो दरिचो पे सजा रखे है परदे
बाहर है क़यामत का जो मंज़र, तो हमें क्या
हमने तो कभी जुराअते परवाज़ नहीं की
तोड़े गए यारो के जो शहपर, तो हमें क्या
दीवारों दरो बाम हमारे है मुनक्कश
शहरी हुए इस शहर के बेघर, तो हमें क्या
बनते नहीं ये लोग भी क्यों शह के मुसाहिब
डसते है उन्हें जब्र के अजगर, तो हमें क्या - मज़हर इमाम
phir shahar me aaye hai sitamgar, to hame kya
phir shahar me aaye hai sitamgar, to hame kyasadko pe hai sannato ke lashkar, to hame kya
hamne to daricho pe saja rakhe hai parde
baahar hai kayamat ka jo manzar, to hame kya
hamne to kabhi juraate parwaz nahi ki
tode gaye hai yaaro ke jo shahpar, to hame kya
deewaro daro baam hamare hai munkkash
shahri hue is shahar ke beghar, to hame kya
bante nahi ye log bhi kyo shah ke musahib
daste hai unhe jabr ke ajgar, to hame kya - Mazhar Imam
Bahut khoob.