उसे पाने को बेघर हो गए हैं
उसे पाने को बेघर हो गए हैंहदों से अपनी बाहर हो गए हैं
रहमदिल कल तलक़ जो भी रहे थे
सुना है सब सितमगर हो गए हैं
मेरे ज़ख्मों पे मरहम के बहाने
तुम्हारे बोल नश्तर हो गए हैं
कभी मिलने नहीं आते हैं ज़ालिम
महज़ वादे मुक़र्रर हो गए हैं
चलो बेनाम निकलो इस नगर से
यहाँ के लोग पत्थर हो गए हैं - बलजीत सिंह बेनाम
use paane ko beghar ho gaye hai
use paane ko beghar ho gaye haihado se apni bahar ho gaye hai
rahamdil kal talak jo bhi rahe the
suna hai sab sitamgar ho gaye hai
mere zakhmo pe marham ke bahane
tumhare bol nashtar ho gaye hai
kabhi milne nahi aatehai zalim
mahaz wade mukarar ho gaye hai
chalo benaam niklo is nagar se
yahan ke log patthar ho gaye hai - Baljeet Singh Benaam
बलजीत सिंह बेनामसम्प्रति:संगीत अध्यापक, उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी:125033
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