जहन में वो तो ख्वाब जैसा है - अर्पित शर्मा अर्पित

जहन में वो तो ख्वाब जैसा है

जहन में वो तो ख्वाब जैसा है,
वो बदन भी गुलाब जैसा है

बंद आँखों से पढ़ भी सकता हूँ,
तेरा चेहरा किताब जैसा है

मेरी पलके झुकी है सजदे में,
दिल भी गंगा के आब जैसा है

हर घड़ी ज़िक्र तेरा करता हूँ,
ये नशा भी शराब जैसा है - अर्पित शर्मा अर्पित


zehan me wo khwab jaisa hai

zehan me wo khwab jaisa hai
wo badan bhi gulab jaisa hai

band aankho se padh bhi sakta hun
tera chehra kitaab jaisa hai

meri palke jhuki hai sajde me
dil bhi ganga ke aab jaisa hai

har ghadi zikra tera karta hun
ye nasha bhi sharaab jaisa hai -Arpit Sharma Arpit

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