मुझसे मत कर यार कुछ गुफ्तार, मै रोज़े से हूँ - ज़मीर जाफ़री

मुझसे मत कर यार कुछ गुफ्तार, मै रोज़े से हूँ

मुझसे मत कर यार कुछ गुफ़्तार, मै रोज़े से हूँ
हो न जाए तुझ से भी तकरार, मै रोज़े से हूँ

हर किसी से कर्ब का इजहार, मै रोज़े से हूँ
दो किसी अखबार को ये तार, मै रोज़े से हूँ

मेरा रोज़ा एक बड़ा अहसान है लोगो के सर
मुझको डालो मोतियों के हार, मै रोज़े से हूँ

मैंने हर फाइल की दुमची पर यह मिसरा लिख दिया
काम हो सकता नहीं सरकार, मै रोज़े से हूँ

ऐ मेरी बीवी मेरे रस्ते से कुछ कतरा के चल
ऐ मेरे बच्चो ज़रा होशियार, मै रोज़े से हूँ

शमा को बहर-ए-जियारत आ तो सकता हूँ मगर
नोट कर ले दोस्त रिश्तेदार, मै रोज़े से हूँ

तू ये कहता है लहन-तर हो कोई ताजा ग़ज़ल
मै ये कहता हूँ कि बरखुरदार मै रोज़े से हूँ – सय्यद ज़मीर जाफरी
मायने
गुफ़्तार = बात, कर्ब = लगाव, लहन-तार = लय बद्ध

mujhse mat kar yaar kuch guftaar, main roze se hun

mujhse mat kar yaar kuch guftaar, main roze se hun
ho n jaye tujh se bhi taqraar, mai roze se hun

har kisi se karb ka izhar, mai roze se hun
do kisi akhbar ko ye taar, mai roze se hun

mera roza ek bada ahsaan hai logo ke sar
mujhko dalo motiyon ke haar, mai roze se hun

maine har file ki dumchi par ya misra likh diya
kaam ho sakta nahi sarkar, mai roze se hun

ae meri biwi mere raste se kuch katra ke chal
ae mere bachcho zara hoshiyar, mai roze se hun

shama ko bahaar-e-ziyarat aa to sakta hu magar
note kar le dost rishtedar, mai roze se hun

tu ye kahta hai lahan-tar ho koi tazaa ghazal
mai ye kahta hun ki barkhurdar mai roze se hun - Sayyad Zameer Zafri
jakhira, maiñ roze se huuñ, main roze se hun shayri, shayari

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