इश्क़ का रोग भला कैसे पलेगा मुझसे
इश्क़ का रोग भला कैसे पलेगा मुझसेक़त्ल होता ही नहीं यार अना का मुझसे
गर्म पानी की नदी खुल गयी सीने पे मेरे
कल गले लग के बड़ी देर वो रोया मुझसे
मैं बताता हूँ कुछेक दिन से सभी को कमतर
साहिबो ! उठ गया क्या मेरा भरोसा मुझसे
इक तेरा ख्वाब ही काफ़ी है मिरे उड़ने को
रश्क करता है मेरी जान परिंदा मुझसे
यक ब यक डूब गया अश्कों के दरिया में मैं
बाँध यादों का तेरी आज जो टूटा मुझसे
किसी पत्थर से दबी है मेरी हर इक धड़कन
सीख लो ज़ब्त का जो भी है सलीक़ा मुझसे
कोई दरवाजा नहीं खुलता मगर जान मेरी
बात करता है तेरे घर का दरीचा मुझसे
बुझ गया मैं तो ग़ज़ल पढ़ के वो जिसमें तू था
पर हुआ बज़्म की रौनक़ में इज़ाफ़ा मुझसे - प्रखर मालवीय 'कान्हा'
परिचय -
आपका जन्म आज़मगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) में हुआ | आपकी प्रारंभिक शिक्षा आजमगढ़ से हुई .. बरेली कॉलेज बरेली से B.COM और शिब्ली नेशनल कॉलेज आजमगढ़ से M.COM की डिग्री हासिल की ..वर्तमान में CA की ट्रेनिंग नॉएडा से कर रहे हैं
अमर उजाला, हिंदुस्तान, हिमतरू, गृहलक्ष्मी, कादम्बनी इत्यादि पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित .. 'दस्तक' और 'ग़ज़ल के फलक पर ' नाम से दो साझा ग़ज़ल संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं ..
आपके उस्ताद - स्वप्निल तिवारी 'आतिश' है |
ishq ka rog bhala kaise palega mujhse
ishq ka rog bhala kaise palega mujhsekatl hota hi nahi yaar anaa ka mujhse
garm pani ki nadi khul gayi sine pe mere
kal gale lag ke badi der wo roya mujhse
mai batata hu kuchek din se sabhi ko kamtar
sahibo! uth gaya kya mera bharosa mujhse
ik mera khwab hi kafi hai mire udne ko
rashq karta hai meri jaan parinda mujhse
yak b rak dub gya ashqo ke dariya se me mai
bandh yado ka teri aaj jo tuta mujhse
koi darwaja nahi khulta magar jaan meri
baat karta hai tere ghar ka daricha mujhse
bujh gya mai to gazal padh ke wo jisme tu tha
par hua bajm ki rounak me izafa mujhse - Prakhar Malviy Kanha