होंठ सींकर जख्म मेरे अधखुले से रह गये
होंठ सींकर जख्म मेरे अधखुले से रह गयेदिल की उस वेदना को भी बस सीने में दबाकर रह गये
दूसरों के जख्म सींकर खुद के इतने उघड गये
ढकने को तो चीथड़े भी वक़्त के कम पड़ गये
फिर भी तो अब वो खुले जख्म से रह गये
वक़्त की बंदिशों में भी हम मजबूर से हो गये
कहाँ से लाऊँ, किसे दिखाऊं, दर्द कहाँ कम पड गये
आँख खोली तो देखकर ही हम तो हैरान रह गये
वक़्त की गर्दिश में रगड़े और लहूलुहान हो गये
चीथड़े जो वक़्त के वो भी अब हैरान हो गये
अस्तित्व बचाने को अपना अब तो हम यहाँ रह गये
नया कुछ करने का ख्वाब बस ख्वाब बन कर रह गये – कमलेश संजीदा
परिचयआपका वास्तविक नाम कमलेश कुमार गौतम है और आप अपने संजीदा तखल्लुस का उपयोग करते है | आपका जन्म १ जनवरी १९७६ को कानपुर देहात (उत्तर प्रदेश) में हुआ |
आप साहित्यिक कार्य 1987 से करते आ रहे है जिनमे कई विधाए शामिल है जैसे ग़ज़ल, कविता, लेख, कहानिया इत्यादि | आप वर्तमान में S.R.M. University गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश में प्रोफ़ेसर पद पर पदस्थ है |
आपसे kavikamleshsanjida@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है |
Hoth seeker zakhm mere adhkhule se rah gaye
Hoth seeker zakhm mere adhkhule se rah gayeDil ki us vedna ko bhi bas seene me dabakar rah gye
Dusro ke zakhm seeker khud ke itne ughad gye
Dhakne ko to chithde bhi waqt ke kam pad gye
Fir bhi to ab wo khule zakhm se rah gye
Waqt ki bandisho me bhi ham majboor se ho gaye
Kaha se laau, kise dikhau, dard kaha kam pad gye
Aankh kholi to dekhkar hi ham to hairan rah gye
Waqt ki gardish me ragde aur lahuluhan ho gye
Chithde jo waqt ke wo bhi ab hairan ho gye
Astitv bachane ko apna ab to ham yaha rah gye
Naya kuch karne ka khwab bas khwab ban kar rah gye – Kamlesh Sanjida