इंसानियत तो एक है मजहब अनेक है - मुनिकेश सोनी

इंसानियत तो एक है मजहब अनेक है ये ज़िन्दगी इसको जीने के मक़सद अनेक है

इंसानियत तो एक है मजहब अनेक है

इंसानियत तो एक है मजहब अनेक है
ये ज़िन्दगी इसको जीने के मक़सद अनेक है

ना खाई ठोकरे वो रह गया नाकाम
ठोकरे खाकर सँभलने वाले अनेक हैं

ना महलों में ख़ामोशी ना फूटपाथ पर
क़ब्रिस्तान में ख़ामोशी से लेटे अनेक है

बहुत चीख़ती है मेरे दिल की ख़ामोशी तन्हाई में
ख़ामोशी अच्छी है कहते अनेक है

रोये थे कभी उसकी याद में अकेले बैठकर
आँखे मेरी लाल है कहते अनेक है - मुनिकेश सोनी


Insaniyat to ek hai majhabv anek hai

Insaniyat to ek hai majhabv anek hai
ye zindgi isko jeene ke maksad anek hai

naa khai thokre wo rah gaya nakam
thokre khakar sambhlane wale anek hai

na mahlo me khamoshi na futpath par
kabristaan me khamoshi se lete anek hai

bahut cheekhti hai mere dil ki khamoshi tanhai me
khamoshi achchi hai kahte anek hai

roye the kabhi uski yaad me akele baithkar
aankhe meri laal hai kahte anek hai - Munikesh Soni

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