झूठ कैसे हलक से उतरे निवाले की तरह
झूठ कैसे हलक से उतरे निवाले की तरहमेरी गैरत चीखती है मुह के छाले की तरह
प्यास की शिद्दत से मुह खोले परिंदा गिर पड़ा
सीढियों पर हाफ्ते अखबार वाले की तरह
ऐसे मौसम में बरहना फिर रहा हू मै कि जब
ओढ़ लेता है शज़र पत्ते दुशाले की तरह
एक कैदी की तरह मेरी अना बेबस रही
ख्वाहिशे घेरे रही मकड़ी के जाले की तरह
इक सुलगते शहर में बच्चा मिला हँसता हुआ
सहमे सहमे से चरागों के उजाले की तरह - मुनव्वर राना
मायने
शिद्दत = तेजी, बरहना = नग्न, शज़र = पेड़, अना = स्वाभिमान
jhuth kaise halak se utre niwale ki tarah
jhuth kaise halak se utre niwale ki tarahmeri gairat chikhti hai muh ke chhale ki tarah
pyas ki shiddat se muh khole parinda gir pada
sidhiyo par hafte akhbaar wale ki tarah
aise mousam me barhana fir raha hu mai ki jab
odh leta hai shazar patte dushale ki tarah
ek kaidi ki tarah meri ana bebas rahi
khwahishe ghere rahi makdi ke jale ki tarah
ik sulgate shahar me bachcha mila hasta hua
sahme sahme se charago ke ujale ki tarah - Munwwar Rana