अपने ख़्वाबों में तुझे जिसने भी देखा होगा
अपने ख़्वाबों में तुझे जिसने भी देखा होगाआँख खुलते ही तुझे ढूँढने निकला होगा
ज़िन्दगी सिर्फ़ तेरे नाम से मन्सूब रहे
जाने कितने ही दिमाग़ों ने ये सोचा होगा
दोस्त हम उसको ही पैग़ाम-ए-करम समझेंगे
तेरी फ़ुर्क़त का जो जलता हुआ लम्हा होगा
दामन-ए-ज़ीस्त में अब कुछ भी नहीं है बाक़ी
मौत आयी तो यक़ीनन उसे धोखा होगा
रौशनी जिससे उतर आई लहू में मेरे
ऐ मसीहा वो मेरा ज़ख़्म-ए-तमन्ना होगा - अब्बास अली दाना
apne khwabo me tujhe jisne bhi dekha hoga
apne khwabo me tujhe jisne bhi dekha hogaaankh khulte hi tujhe dhundhne laga hoga
zindgi sirf tere naam se mandub rahe
jaane kitne hi dimago ne ye socha hoga
dost ham usko hi paigam-e-karam samjhege
teri furkat ka jo jalta hua lamha hoga
daman-e-jist me ab kuch bhi nahi hai baki
mout aayi to yakinan use dhokha hoga
roushni jisse utar aai lahu me mere
ae masiha wo mera jakhm-e-tamnna hoga - Abbas Ali Dana
आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी, हर किसीके जीवन में ऐसा कोई आता हैं,
थैंक्स