दुख का अहसास न मारा जाये
दुख का अहसास न मारा जायेआज जी खोल के हारा जाये
इन मकानों में कोई भूत भी है
रात के वक्त पुकारा जाये
सोचने बैठे तो इस दुनिया में
एक लम्हा न गुजारा जाये
ढूंढता हू मै ज़मी अच्छी-सी
ये बदन जिसमें उतारा जाये
साथ चलता हुआ साया अपना
एक पत्थर इसे मारा जाये - मुहम्मद अल्वी
dukh ka ahsaas n maara jaye
dukh ka ahsaas n maara jayeaaj ji khol ke haara jaye
in makaano me koi bhut bhi hai
raat ke wakt pukara jaye
sochne baithe to is duniya me
ek lamha n gujara jaye
dhundhta hu mai zamin achchi-si
ye badan jisme utara jaye
saath chalta hua saaya apna
ek patthar ise maara jaye- Muhmmad Alwi
बढिया गज़ल है तमाम अश आर उम्दा काबिले दाद हैं शुक्रिया .