वफ़ा जो मुझ को रास आई नहीं है - सीमाब सुल्तानपुरी

वफ़ा जो मुझ को रास आई नहीं है

वफ़ा जो मुझ को रास आई नहीं है
तिरी क्या इस में रुसवाई नहीं है

पसारूँ हाथ क्या दाता के आगे
जो माँगी है वो शय पाई नहीं है

मुहब्बत की कोई कीमत नहीं तय
ये शय बाज़ार में आई नहीं है

परत अन्दर परत है याद तेरी
ये पानी पर जमी काई नहीं है

तस्सवुर का लगा है रोग जब से
मिरी तन्हाई तन्हाई नहीं है

शनासाई किसी से क्या करेगा
जिसे ख़ुद से शनासाई नहीं है

तुझे सूरज की सच्चाई पे शक है
तिरी आँखों में बीनाई नहीं है

जो आकर मौत मुझ से छीन लेगी
हयात ऐसा तो कुछ लाई नहीं है

अभी इतरा लो ऐ काली घटाओ!
अभी वो ज़ुल्फ़ लहराई नहीं है

ज़बां की चोट से तोड़ा है दिल को
अब आसाँ इस की भरपाई नहीं है

मैं क्यूँ “सीमाब” उस को भूल जाऊँ
क़सम ऐसी कोई खाई नहीं है -सीमाब सुल्तानपुरी

wafa jo mujhko raas aayi nahi hai

wafa jo mujhko raas aayi nahi hai
tiri kya is me ruswai nahi hai

pasaru hath kya data ke aage
jo mangi hai wo shay paai nahi hai

muhbbat ki koi keemat nahi tay
ye shaya bazar me aai nahi hai

parat andar parat hai yaad teri
ye paani par jami kaai nahi hai

taswwur ka laga hai rog jab se
miri tanhai tanhai nahi hai

shanashai kisi se kya karega
jise khud se shanasai nahi hai

tujhe suraj ki sachchai pe shaq hai
tiri aankho me binai nahi hai

jo aakar mout mujh se cheen legi
hayat aisa to kuch laai nahi hai

abhi itra lo ae kaali ghatao !
abhi wo zulf lahrai nahi hai

zubaan ki chot se toda hai dil ko
ab aasaan is ki bharpai nahi hai

mai kyu seemab usko bhool jau
kasam aisi koi khai nahi hai - Seemab Akbrabadi

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