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खुशी का मसअला क्या है जो मुझसे खौफ खाती है
इसे जब भी बुलाता हू गमो को साथ लाती है
चिरागों कब हवा की दोगली फितरत को समझोगे
जलाती है यही तुमको यही तुमको बुझाती है
मराशिम के शज़र को बद्जनी का घुन लगा जबसे
कोई पत्ता भी जब खींचे तो डाली टूट जाती है
कुछ और शेर
बारहा दिल कह रहा है खुदखुशी के वास्ते
अक्ल लेकिन लड़ रही है जिंदगी के वास्ते
गर्दिशे दौरा में वो मुझसे मिला कुछ इस तरह
जैसे कम्बल मिला हो जनवरी के वास्ते
शर्बते-सादा-दिली का जायका फीका-सा है
कोई चालाकी मिला दो चाशनी के वास्ते
आदमी के मसअलो को आदमी हल क्या करे
आदमी खुद मसअला है आदमी के वास्ते
दिन के सारे राज कैसे रात पर अफसा हुए
हो न हो सूरज गया था मुखबिरी के वास्ते
जितने सह सकता था गम उससे कही बढ़कर मिले
जैसे दसवी की किताबे तीसरी के वास्ते-अनवर जलालाबादी
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anwar jalababi
इसे जब भी बुलाता हू गमो को साथ लाती है
चिरागों कब हवा की दोगली फितरत को समझोगे
जलाती है यही तुमको यही तुमको बुझाती है
मराशिम के शज़र को बद्जनी का घुन लगा जबसे
कोई पत्ता भी जब खींचे तो डाली टूट जाती है
कुछ और शेर
बारहा दिल कह रहा है खुदखुशी के वास्ते
अक्ल लेकिन लड़ रही है जिंदगी के वास्ते
गर्दिशे दौरा में वो मुझसे मिला कुछ इस तरह
जैसे कम्बल मिला हो जनवरी के वास्ते
शर्बते-सादा-दिली का जायका फीका-सा है
कोई चालाकी मिला दो चाशनी के वास्ते
आदमी के मसअलो को आदमी हल क्या करे
आदमी खुद मसअला है आदमी के वास्ते
दिन के सारे राज कैसे रात पर अफसा हुए
हो न हो सूरज गया था मुखबिरी के वास्ते
जितने सह सकता था गम उससे कही बढ़कर मिले
जैसे दसवी की किताबे तीसरी के वास्ते-अनवर जलालाबादी
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