मिलेगी शेख को जन्नत हमें दौजख अता होगा
मिलेगी शेख को जन्नत हमें दौजख अता होगाबस इतनी बात है, जिसके लिए महशर बपा होगा
रहे दोनों फ़रिश्ते साथ अब इन्साफ क्या होगा
किसी ने कुछ लिखा होगा, किसी ने कुछ लिखा होगा
बरोज़े-हश्र हाकिम कादरे मुतलक खुदा होगा
फरिश्तों के लिखे और शेख की बातो से क्या होगा
तेरी दुनिया में सब्रो-शुक्र से हमने बसर कर ली
तेरी दुनिया से बढ़कर भी तेरे दौजख में क्या होगा
मुरक्कब हू मै निसियानो-खता से क्या कहू यारब
कभी हर्फे-तमन्ना भी जबा पर आ गया होगा
सुकूने-मुस्तकिल, दिल बे-तमन्ना, शेख की सुहबत
यह जन्नत है तो इस जन्नत से दौजख क्या बुरा होगा
मेरे अशआर पर खामोश है ज़ुजबुज़ नहीं होता
यह वाइज़ वाइजो में कुछ हकीकत-आशना होगा - पंडित हरिचंद अख्तर
मायने
दौजख = नर्क, महशर = महाप्रलय, बपा = कायम होना, मुतलक = मुलाकात, मुरक्कब = मिला हुआ, निसियानो-खता = भूल-दोष, हर्फे-तमन्ना = इच्छा की बात, मुस्तकिल = दृढ/अटल, अशआर = शेरो, जुज़बुज़ = अनिश्चय, वाइज़ = धर्मोपदेशक, आशना = वाकिफ