ग़ालिब के खत - 3

ग़ालिब के खत - 3

जनवरी सन् 1856 ई.
असदुल्ला
क्यों महाराज?

कोल में आना और मुंशी नबी बख्श साहिब के साथ ग़ज़ल ख़ानी करनी और हमको याद न लाना। मुझसे पूछो कि मैंने क्योंकर जाना कि तुम मुझको भूल गए। कल में आए और मुझको अपने आने की इत्तिला न दी। न लिखा कि मैं क्योंकर आया हूँ और कब आया हूँ और कब तक रहूँगा और कब जाऊँगा, और बाबू साहिब से कहाँ जा मिलूँगा। ख़ैर, अब जो मैंने बेहयाई करके तुमको लिखा है, ला‍ज़िम है कि मेरा क़सूर माफ़ करो और मुझको सारी अपनी हक़ीक़त लिखो।

तुम्हारे हाथ की लिखी हुई ग़ज़लों, बाबू साहिब की, मेरे पास मौजूद हैं और इस्लाह पा चुकी हैं। अब मैं हैरान हूँ कि कहाँ भेजूँ? हरचंद उन्होंने लिखा है कि अकबराबाद, हाशिम अली ख़ां को भेज दो, लेकिन मैं न भेजूँगा। जब वे अजमेर या भरतपुर पहुँचकर मुझको ख़त लिखेंगे, तो मैं उनको वे औ़राक़ इरसाल करूँगा। या तुम जो लिखोगे, उस पर अमल करूँगा।

भाई, एक दिन शराब न पियो या कम पियो और हमको दो-चार सतरें लिख भेजो, कि हमारा ध्यान तुममें लगा हुआ है।

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