ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के - मिर्ज़ा ग़ालिब

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के

ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये
हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के

ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के

रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम
धोए धब्बे जामा-ए-एहराम के

दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर
ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के

शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेह्हत की ख़बर
देखिए कब दिन फिरें हम्माम के

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के - मिर्ज़ा ग़ालिब
मायने
तशनालब = प्यासे होठ, खस्तगी = थकावट, चर्खे-नीली फाम = नीलगगन, जमजम = एक पवित्र ताल का पानी, जामा-ए-एहराम = पवित्र वस्त्र, हल्के = फंदा, दाम = जाल, गुस्ले-सेहत = स्वास्थ्य स्नान


gair len mahfil mein bose jam ke

gair len mahfil mein bose jam ke
hum rahen yun tishna-lab paigham ke

khastagi ka tum se kya shikwa ki ye
hathkande hain charkh-e-nili-fam ke

khat likhenge garche matlab kuchh na ho
hum to aashiq hain tumhaare nam ke

raat pi zamzam pe mai aur subh-dam
dhoe dhabbe jama-e-ehram ke

dil ko aankhon ne phansaya kya magar
ye bhi halqe hain tumhaare dam ke

shah ke hai ghusl-e-sehhat ki khabar
dekhiye kab din phiren hammam ke

ishq ne 'ghalib' nikamma kar diya
warna hum bhi aadmi the kaam ke - Mirza ghalib

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