यूँ तेरी रहगुज़र से दीवाना-वार गुज़रे
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवाना-वार गुज़रेकाँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से इक दिन बहार गुज़रे
दार-ओ-रसन से दिल तक सब रास्ते अधूरे
जो एक बार गुज़रे वो बार-बार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
मस्जिद के ज़ेर-ए-साया बैठे तो थक-थका कर
बोला हर इक मिनारा तुझ से हज़ार गुज़रे
क़ुर्बान इस नज़र पे मरियम की सादगी भी
साए से जिस नज़र के सौ किर्दगार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा हम ने भी तुझ को देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे - मीना कुमारी नाज़
मायने
दीवाना-वार = दीवाने की तरह, दार-ओ-रसन से = फासी के तख्ते से, ज़ेर-ए-साया = छाया में, किर्दगार = संसार का रचियता / सर्वशक्तिमान
yun teri rahguzar se diwana-war guzre
yun teri rahguzar se diwana-war guzrekandhe pe apne rakh ke apna mazaar guzre
baiThe hain raste mein dil ka khanDhar saja kar
shayad isi taraf se ek din bahaar guzre
dar-o-rasan se dil tak sab raste adhure
jo ek bar guzre wo bar-bar guzre
bahti hui ye nadiya ghulte hue kinare
koi to par utre koi to par guzre
masjid ke zer-e-saya baiThe to thak-thaka kar
bola har ek minara tujh se hazar guzre
qurban is nazar pe mariyam ki sadgi bhi
saaye se jis nazar ke sou kirdgar guzre
tu ne bhi hum ko dekha hum ne bhi tujh ko dekha
tu dil hi haar guzra hum jaan haar guzre - Meena Kumar "Naaz"
बहुत खूबसूरत गजल .....