फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आयादिल जिगर तश्ना-ए-फरियाद आया
दम लिया था न क़यामत ने हनोज
फिर तेरा वक्ते-सफ़र याद आया
सादगी-हाए-तमन्ना, यानि
फिर वो नैरंगे-नज़र याद आया
उज्रे-वामान्दगी ए हसरते-दिल
नाला करता था जिगर याद आया
जिन्दगी यो भी गुजर ही जाती
क्यों तेरा राहगुजर याद आया
क्या ही रिज्वा से लड़ाई होगी
घर तेरा खुल्द में गर याद आया
आह वो जुर्रते-फरियाद कहा
दिल से तंग आके जिगर याद आया
फिर तेरे कुचे को जाता है ख्याल
दिले-गुमगश्ता मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया
मैंने मजनू पे लड़कपन में असद
संग उठाया था की सर याद आया - मिर्ज़ा ग़ालिब
मायने
दीदा-ए-तर = भीगी हुई आख, तश्ना-ए-फरियाद = आर्तनाद का प्यासा, नैरंगे-नज़र = आँखों का सौन्दर्य, उज्रे-वामान्दगी = थकन का बहाना, रिज्वा = स्वर्ग का दरबान, खुल्द = स्वर्ग, दिले-गुमगश्ता = खोया हुआ दिल, दश्त = जंगल
fir mujhe dida-e-tar yaad aaya
fir mujhe dida-e-tar yaad aayadil jigar tashna-e-fariyad aaya
dam liya tha n kayamat ne hanoj
fir tera waqt-e-safar yaad aaya
sadgi-hae-tamnna, yani
fir wo nairnge-nazar aaya
uzre-wamanandgi e hasrate dil
nala karta tha jigar yaad aaya
zindgi yo bhi gujar hi jati
kyo tera rahgujar yaad aaya
kya hi rizwa se ladai hogi
ghar tera khuld me gar yaad aaya
aah wo zurrate-fariyad kaha
dil se tang aake jigar yaad aaya
fir tere kunche ko jata hai khyal
dil-e-gumgashta magar yaad aaya
koi veerani si veerani hai
dasht ko dekh ke ghar yaad aaya
maine majnu pe ladakpan me Asad
sang uthaya tha ki sar yaad aaya - Mirza Ghalib