क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने कियाउम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया
तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इस शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझ से बे-ख़बर मैं ने किया
कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेच-ओ-ख़म
ज़िंदगी-भर तो किताबों का सफ़र मैं ने किया
किस को फ़ुर्सत थी कि बतलाता तुझे इतनी सी बात
ख़ुद से क्या बरताव तुझ से छूट कर मैं ने किया
चंद जज़्बाती से रिश्तों के बचाने को 'वसीम'
कैसा कैसा जब्र अपने आप पर मैं ने किया - वसीम बरेलवी
मायने
शिद्दत=अति, पेचो-ख़म=घुमाव-फिराव, नज्र=भेट, उपहार, जब्र=जोर जबरदस्ती
kya bataun kaisa khud ko dar-ba-dar main ne kiya
kya bataun kaisa khud ko dar-ba-dar main ne kiyaumr-bhar kis kis ke hisse ka safar main ne kiya
tu to nafrat bhi na kar paega is shiddat ke sath
jis bala ka pyar tujh se be-khabar main ne kiya
kaise bachchon ko bataun raston ke pech-o-kham
zindagi-bhar to kitabon ka safar main ne kiya
kis ko fursat thi ki batlata tujhe itni si baat
khud se kya bartaw tujh se chhut kar main ne kiya
chand jazbaati se rishton ke bachane ko 'wasim'
kaisa kaisa jabr apne aap par main ne kiya - Waseem Barelvi
लाजवाब ग़ज़ल है भाई वसीम साहब की ....
शुक्रिया इस हम तक पहुंचाने का !