इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई - मिर्ज़ा ग़ालिब

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई

शरअ' ओ आईन पर मदार सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई

चाल जैसे कड़ी कमान का तीर
दिल में ऐसे के जा करे कोई

बात पर वाँ ज़बान कटती है
वो कहें और सुना करे कोई

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई

न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई

रोक लो गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई

कौन है जो नहीं है हाजत-मंद
किस की हाजत रवा करे कोई

क्या किया ख़िज़्र ने सिकंदर से
अब किसे रहनुमा करे कोई

जब तवक़्क़ो ही उठ गई 'ग़ालिब'
क्यूँ किसी का गिला करे कोई - मिर्ज़ा ग़ालिब
मायने
हाजतमंद = जरूरतमंद, रवा = पूरा करना, तवक्को = प्रत्याशा


ibn-e-mariyam hua kare koi

ibn-e-mariyam hua kare koi
mere dukh ki dawa kare koi

shara o aain par madar sahi
aise qatil ka kya kare koi

chaal jaise kaDi kaman ka tir
dil mein aise ke ja kare koi

baat par wan zaban kaTti hai
wo kahen aur suna kare koi

bak raha hun junun mein kya kya kuchh
kuchh na samjhe KHuda kare koi

na suno gar bura kahe koi
na kaho gar bura kare koi

rok lo gar ghalat chale koi
baKHsh do gar KHata kare koi

kaun hai jo nahin hai hajat-mand
kis ki hajat rawa kare koi

kya kiya KHizr ne sikandar se
ab kise rahnuma kare koi

jab tawaqqoa hi uTh gai 'ghalib'
kyun kisi ka gila kare koi - Mirza Ghalib

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