न शाम है न सवेरा, अजब दयार में हूँ
न शाम है न सवेरा, अजब दयार में हूँमै एक अरसए बेरंग के हिसार में हूँ
सिपाहे गैर ने कब मुझको जख्म-जख्म किया
मै आप अपनी ही साँसों के कारज़ार में हूँ
कशा-कशा जिसे ले जाएँगे मकतल
मुझे खबर है की मै भी उसी कतार में हूँ
अता-पता किसी खुशबु से पूछ लों मेरा
यही-कही किसी मंजर, किसी बहार में हूँ
न जाने कौन से मौसम में फुल महकेंगे
न जाने कब से तेरी चश्मे-इन्तजार में हूँ
शरफ मिला है कहा तेरी हमराही का मुझे
तू शहसवार है और में तेरे गुबार में हूँँ - अतहर नफीस
मायने
दयार = जगह, अरसए बेरंग = बेरंग समय/अजीब स्थिति, हिसार = घेरा, सिपाहे गैर = शत्रु सेना, कारज़ार = युद्धस्थल, कशा-कशा = धीरे-धीरे, मकतल = वधगृह के समीप, चश्मे-इन्तजार = इंतजार कर रही आँख, शरफ = सौभाग्य, हमराही = सहयात्रा, शहसवार = घुड़सवार, गुबार = धुल/मिटटी
n shaam hai n sawera, jab dayar me hu
n shaam hai n sawera, jab dayar me humai ek arsae berang ke hisar me hu
sipahe gair ne kab mujhko jakhm-jakhm kiya
mai aap apni hi saanso ke karjar me hu
kasha-kasha jise le jayenge maktal
mujhe khabar hai ki mai bhi usi kataar mai hu
ata-pata kisi khushbu se puch lo mera
yahi-kahi kisi manjar, kisi bahaar me hu
n jaane koun se mousam me phool mahkenge
n jaane kab se teri chashme-intjar me hu
sharaf mila hai kaha teri hamrahi ka mujhe
tu shaharwar hai aur mai tere gubaar me hu - Athar Nafis