जब कभी मै खुद को समझाऊं कि तू मेरा नहीं - खुर्शीद रिज़वी

जब कभी मै खुद को समझाऊं कि तू मेरा नहीं मुझ में कोई चीख उठता है, नहीं ऐसा नहीं

जब कभी मै खुद को समझाऊं कि तू मेरा नहीं

जब कभी मै खुद को समझाऊं कि तू मेरा नहीं
मुझ में कोई चीख उठता है, नहीं ऐसा नहीं

कब निकलता है कोई, दिल में उतर जाने के बाद
इस गली के दूसरी जानिब कोई रास्ता नहीं

तुम समझते हो बिछड़ जाने से मिट जाता है इश्क़
तुम को इस दरिया की गहराई का अंदाजा नहीं

तुझे तराशूंगा ग़ज़ल में, तेरे पैकर के नुकूश
वो भी देखेगा तुझे जिसने तुझे देखा नहीं

उनसे मिलकर भी कहा मिटता है दिल का इज्तिराब
इश्क़ की दिवार के दोनों तरफ साया नहीं - खुर्शीद रिज़वी


jab kabhi mai khud ko samjhaun ki tu mera nahin

jab kabhi mai khud ko samjhaun ki tu mera nahin
mujh me koi cheekh uthta hai, nahin aisa nahin

kab niklata hai koi, dil me utar jane ke baad
is gali ke dusri janib koi rasta nahin

tum samjhate ho bichhad jane se mit jata hai ishq
tum ko is dariya ki gahrai ka andaza nahin

tujhe tarshunga ghazal me, tere paikar ke nukoosh
wo bhi dekhega tujhe jisne tujhe dekha nahin

unse milkar bhi kaha milta hai dil ka iztiraab
ishq ki deewar ke dono taraf saya nahin - Khurshid Rizwi

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