आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया - हमीद जालंधरी

आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया

आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया
कोई दम बैठा, दिल-ए-नाशाद को बहला गया

कौन ला सकता है ताब उस के रुख़-ए-पुर-नूर की
जिस तरफ़ से हो के गुज़रा, बर्क़ सी लहरा गया

आँख भर कर देख लेना कुछ ख़ता ऐसी न थी
क्या ख़बर क्यूँ उन को मुझ पर इतना ग़ुस्सा आ गया

फिर गई एक और ही दुनिया नज़र के सामने
बैठे बैठे क्या बताऊँ, क्या मुझे याद आ गया

यक-ब-यक मग़्मूम के चेहरे पे रौनक़ आ गई
कौन जाने आँखों आँखों में वो क्या समझा गया

यूँ तो हम ने भी उसे देखा है लेकिन ऐ 'हमीद'
जाने तुझ को कौन सा अंदाज़ उस का भा गया - हमीद जालंधरी


aa ke wo mujh khasta-jaan par yun karam farma gaya

aa ke wo mujh khasta-jaan par yun karam farma gaya
koi dam baitha, dil-e-nashad ko bahla gaya

kaun la sakta hai taab us ke rukh-e-pur-nur ki
jis taraf se ho ke guzra barq si lahra gaya

aankh bhar kar dekh lena kuchh khata aisi na thi
kya khabar kyun un ko mujh par itna ghussa aa gaya

phir gai ek aur hi duniya nazar ke samne
baithe baithe kya bataun, kya mujhe yaad aa gaya

yak-ba-yak maghmum ke chehre pe raunaq aa gai
kaun jaane ankhon ankhon men wo kya samjha gaya

yun to ham ne bhi use dekha hai lekin ae 'hamid'
jaane tujh ko kaun sa andaz us ka bha gaya - Hameed Jalandhari

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