तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर
तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
सुबह औ' शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है...
ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,
यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर,
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर,
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
- शंकर शैलेन्द्र
Tu zinda hai to zindagi ki jeet par yaqeen kar
Tu zinda hai to zindagi ki jeet par yaqeen kar,agar kahiN hai swarg to utaar la zameen par !... tu zinda hai
ye subah auR sham ke range hue gagan ko chumkar,
tu sun zameeN ga rahi hai kab se jhum jhum kar,
tu aa mera singaar kar tu aa mujhe haseen kar!
agar kahiN hai swarg to utaar la zameen par !... tu zinda hai
ye gham ke aur char din, sitam ke aur char din,
ye din bhi jayenge gujar, gujar gaye hajaar din,
kabhi to hogi is chaman pe bhi bahar ki nazar!
agar kahiN hai swarg to utaar la zameen par !... tu zinda hai
hamare karavaaN ka manzilo ko intzaar hain,
ye aandhiyon ki, bijliyon ki, peeth par sawar hain,
jidhar padenge ye kadam banegi ek nai dagar,
agar kahiN hai swarg to utaar la zameen par !... tu zinda hai
hajar bhesh dhar ke aai mout tere dwar par,
magar tujhe n chhal saki chali gai wo haar kar,
nai subah ke sang sada tujhe mili nai umar,
agar kahiN hai swarg to utaar la zameen par !... tu zinda hai
zameeN ke pet me pali agan, pale hai zalzale,
tike na tik sakenge bhookh rog ke swaraaj ye,
musibatoN ke sar kuchal, badhenge ek sath ham,
agar kahiN hai swarg to utaar la zameen par !... tu zinda hai
buri hai aag pet ki, bure hai dil ke daagh ye,
n dab sakenge, ek din banenge inqlaab ye,
girenge zulm ke mahal, banenge phir naveen ghar!
agar kahiN hai swarg to utaar la zameen par !... tu zinda hai
- Shankar Shailendra
बहुत ही गज़ब की प्रस्तुति है दिल को छू गयी।