तुझसे बिछुड़े है तो अब किससे मिलाती है हमें
तुझसे बिछुड़े है तो अब किससे मिलाती है हमेंजिन्दगी देखिये क्या रंग दिखाती है हमें
मरकजे-दीद-ओ-दिल तेरा तसव्वुर था कभी
अब इस बात पे कितनी हसी आती है हमें
फिर कही ख्वाबो-हकीक़त का तसादुम होगा
फिर कोई मंजिले-बेनाम बुलाती है हमें
दिल में वो दर्द न आँखों में वो तुगयानी है
जाने किस सिम्त ये दुनिया लिए जाती है हमें
गर्दिशे-वक़्त का कितना बड़ा अहसाँ है कि आज
ये ज़मी चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें - शहरयार
मायने
मर्कज़े-दीद-ओ-दिल = आँखों और दिल का केंद्र, तसव्वुर = कल्पना, ख्वाबो-हकीक़त = स्वप्न और सत्य, तसादुम = संघर्ष, मंजिले-बेनाम = अज्ञात गंतव्य, तुगयानी = बाढ़, सिम्त = दिशा
Tujhse bichhude hai to ab kisse milati hai hame
Tujhse bichhude hai to ab kisse milati hai hamezindagi dekhiye kya rang dikhati hai hame
markaz-e-deed-o-dil tera taswwur tha kabhi
ab is baat pe kitni hasi aati hai hame
phir kahi khwabo-haqikat ka tasadum hoga
phir koi manzil-e-benam bulati hai hame
dil me wo dard n aankho me wo tugyani hai
jane kis simt ye duniya liye jati hai hame
gardish-e-waqt ka kitna bada ahsaaN hai ki aaj
ye zameeN chand se behtar nazar aati hai hame - Shaharyar
बहुत ही मनभावन शेर .... वाह शुक्रिया
खुबसुरत। मजा आ गया।
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
शहरयार साहब वैसे भी आज के दौर के सबसे बुजुर्ग शायर हेई उनका हर शेर उम्दा है | आप लोगो की टिप्पणियों के लिए धन्यवाद |