चेहरा मेरा था निगाहें उस की - परवीन शाकिर

चेहरा मेरा था निगाहें उस की

चेहरा मेरा था निगाहें उस की
ख़ामुशी में भी वो बातें उस की

मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
शेर कहती हुई आँखें उस की

शोख़ लम्हों का पता देने लगीं
तेज़ होती हुई साँसें उस की

ऐसे मौसम भी गुज़ारे हम ने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उस की

ध्यान में उस के ये आलम था कभी
आँख महताब की यादें उस की

फ़ैसला मौज-ए-हवा ने लिक्खा
आँधियाँ मेरी बहारें उस की

नीन्द इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उस की

दूर रह कर भी सदा रहती है
मुझ को थामे हुए बाहें उस की - परवीन शाकिर


Chehra mera tha nigahe us ki

Chehra mera tha nigahe us ki
khamushi me bhi wo bate us ki

mere chehre pe ghazal likhti gai
sher kahti hui aankhe us ki

shoukh lamho ka pata dene lagi
tez hoti hui sanse us ki

aise mousam bhi gujare ham ne
subahe jab apni thi shame us ki

dhyan me us ke ye aalam tha kabhi
aankh mahtaab ki, yaade us ki

faisla mouz-e-hawa ne likkha
aandhiyan meri bahare us ki

neend is soch se tuti aksar
kis tarah katati hai raate us ki

door rah kar bhi sada rahti hai
mujh ko thame hue baahe us ki - Parveen Shakir

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