मौजा-ए-गुल के पीछे पढ़कर क्यों दीवानी हुई है मिटटी - बशीर बद्र

मै ठहरा मिटटी का माधव, जा दीवानी राह ले अपनी | तू सोने-चाँदी की मूरत खुद को क्यों करती है मिटटी ||

मौजा-ए-गुल के पीछे पढ़कर क्यों दीवानी हुई है मिटटी

मौजा-ए-गुल के पीछे पढ़कर क्यों दीवानी हुई है मिटटी |
ठोकर खाकर खुद आएगा जिसकी जहा लिखी है मिटटी ||

गलिया घुप है, मैदा चुप है और वो दीवाना भी नहीं |
मिटटी का दिल बैठ गया है किसी की आज उठी है मिटटी ||

आखे आँसू, दिल भी आँसू, शायद हम सर-त-पा आँसू |
थोड़ी मिटटी और मिला दे अभी बहुत गीली है मिटटी ||

मिटटी का एक और खिलौना ज़ीस्त बनाने वाली है |
खामौशी से देख तो आओ इस आँचल में बंधी है मिटटी ||

आहन जैसी दीवारों में हूँ या इंसान का जिस्म खाकी |
मिटटी की फितरत आजादी है कैद नहीं रह सकती मिटटी ||

पिछले साल यही बहुत-सी टूटी कब्रे मुँह खोले थी |
धरती के जख्मो को कितनी जल्दी भर देती है मिटटी ||

मै ठहरा मिटटी का माधव, जा दीवानी राह ले अपनी |
तू सोने-चाँदी की मूरत खुद को क्यों करती है मिटटी ||

ये जो दिल से नाजुकतर है पहले एक पत्थर का बुत थी |
सदियों ये आँखे रोयी है, सदियों तक भीगी है मिटटी ||

हर जर्रे में राज़ नया है गो मिटटी के तुम हो खिलोने |
एक-एक शेर में बद्र तुम्हारे जैसे बोल रही है मिटटी ||- बशीर बद्र
मायने
मौजा-ए-गुल = फूलो की तरंग, सर-त-पा = सर से पाँव तक, ज़ीस्त = जीवन, आहन = लोहा


mauza-e-gul ke pichhe padhkar kyo deewani hui hai mitti

mauza-e-gul ke pichhe padhkar kyo deewani hui hai mitti
thokar khakar khud aayega jiski jaha likhi hai mitti

galiya ghup hai, maida chup hai aur wo deewana bhi nahin
mitti ka dil baith gaya hai kisi ki aaj uthi hai mitti

aakhe aansu, dil bhi aansu, shayad ham sar-t-paa aansu
thodi mitti aur mila de abhi bahut gili hai mitti

mitti ka ek aur khilauna zist banane wali hai
khamaushi se dekh to aao is aanchal me bandhi hai mitti

aahan jaisi deewaro me hun ya insan ka zism khaki
mitti ki fitrat aazadi hai kais nahi rah sakti mitti

pichhle sal yahi bahut si tuti kabre munh khole thi
dharti ke zakhmo ko kitni jaldi bhar deti hai mitti

mai thahra mitti ka madhav, ja deewani raah le apni
tu sone-chandi ki murat khud ko kyo karti hai mitti

ye jo dil se nazukatar hai pahle ek patthar ka but thi
sadiyn ye aankhe royi hai, sadiyon tak bhigi hai mitti

har zarre me raaz naya hai go mitti ke tum ho khilaune
ek-ek sher me badr tumhare jaise bol rahi hai mitti - Bashir Badr

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