मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मेरा नाम मुसलमानों जैसा हैमुझ को क़त्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
मेरे उस कमरे को लूटो जिसमे मेरी बयाने जाग रही है
और मै जिसमे तुलसी की रामायण से सरगोशी करके
कालिदास के मेघदूत से यह कहता हूँ
मेरा भी एक सन्देश है !
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को क़त्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
लेकिन मेरी रग़-रग़ में गंगा का पानी दौड़ रहा है
मेरे लहू से चुल्लू भर महादेव के मुह पर फेको
और उस महादेव से कह दो- महादेव
अब इस गंगा को वापस ले लों
यह जलील तुर्कों के बदन में गढ़ा गया
लहू बनकर दौड़ रही है
- राही मासूम रज़ा
mera naam musalmano jaisa hai
mera naam musalmano jaisa haimujh ko qatl karo aur mere ghar me aag laga do
mere us kamre ko luto jisme meri bayane jaag rahi hai
aur mai jisme tulsi ki ramayan se sargoshi karke
kalidas ke meghdoot se yah kahta hu
mera bhi ek sandesh hai
mera naam musalmano jaisa hai
mujh ko qatl karo aur mere ghar me aag laga do
lekin meri rag-rag me ganga ka pani doud raha hai
mere lahu se chullu bhar mahadev ke muh par feko
aur us mahadev se kah ho - mahadev
ab is ganga ko wapas le lo
yah jaleel turko ke badan me gadha gaya
lahu bankar dod rahi rhi hai
- Raahi Masoom Raza
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
शौख!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!
कैसे तारीफ़ करूँ इस रचना की.... शब्द ही कम पद रहें हैं.... केवल एक ही शब्द है..............बेहतरीन!
ज़रा यहाँ भी नज़र घुमाएं!
राष्ट्रमंडल खेल
राही मासूम रजा जी आपकी यह कृति सदियों तक याद किया जाएगा ।। यह मानवता का जीता जागता उदाहरण है ।