तुम चली जाओगी परछाइयाँ रह जाएँगी - साहिर लुधियानवी

तुम चली जाओगी परछाइयाँ रह जाएँगी कुछ न कुछ हुस्न की रानाइयाँ रह जाएँगी

तुम चली जाओगी परछाइयाँ रह जाएँगी

तुम चली जाओगी परछाइयाँ रह जाएँगी
कुछ न कुछ हुस्न की रानाइयाँ रह जाएँगी

तुम कि उस झील के साहिल पे मिली हो मुझ से
जब भी देखूँगा यहीं मुझ को नज़र आओगी

याद मिटती है न मंज़र कोई मिट सकता है
दूर जा कर भी तुम अपने को यहीं पाओगी

घुल के रह जाएगी झोंकों में बदन की ख़ुश्बू
ज़ुल्फ़ का अक्स घटाओं में रहेगा सदियों

फूल चुपके से चुरा लेंगे लबों की सुर्ख़ी
ये जवाँ हुस्न फ़ज़ाओं में रहेगा सदियों

इस धड़कती हुई शादाब-ओ-हसीं वादी में
ये न समझो कि ज़रा देर का क़िस्सा हो तुम

अब हमेशा के लिए मेरे मुक़द्दर की तरह
इन नज़ारों के मुक़द्दर का भी हिस्सा हो तुम

तुम चली जाओगी परछाइयाँ रह जाएँगी
कुछ न कुछ हुस्न की रानाइयाँ रह जाएँगी - साहिर लुधियानवी


Tum chali jaogi, parchaiya rah jayegi

Tum chali jaogi, parchaiya rah jayegi
kuch n kuch husn ki ranaiya rah jayegi

tum to is jhil ke sahil pe mili ho
mujh se jab bhi dekhuga yahi mujh ko nazar aaogi

yaad mitti hai n manzar koi mit sakta hai
door jakar bhi tum apne ko yahi paaogi

khul ke rah jayegi jhoko me badan ki khushbu
zulf ka aks ghatao me rahega sadiyo

phool chupke se chura lenge labo ki surkhi
yah jawan husn fizao me rahega sadiyo

is dhadkati hui shadab-o-hasi waadi me
yah n samjho ki jara der ka kissa ho tum

ab hamesha ke liye mere mukddar ki tarah
is najaro ke mukddar ka bhi hissa ho tum

tum chali haogi, parchaiya rah jayegi
kuch n kuch husn ki ranaiya rah jayegi - Sahir Ludhiyanvi

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