तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ - अल्लामा इक़बाल

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना
वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ - अल्लामा इक़बाल
मायने
वादा-ए-बे-हिजाबी = बेशर्म होने का वायदा, ज़ाहिदों = भक्तो को, लन-तरानी = अपनी बड़ाई करना, अहल-ए-महफ़िल = महफ़िल के लोगो, चराग़-ए-सहर = सुबह का तारा


Tere Ishq ki intiha chahta hun

tere ishq ki intiha chahta hun
meri sadgi dekh kya chahta hun

sitam ho ki ho wada-e-be-hijabi
koi baat sabr-azma chahta hun

ye jannat mubarak rahe zahidon ko
ki main aap ka samna chahta hun

zara sa to dil hun magar shoKH itna
wahi lan-tarani suna chahta hun

koi dam ka mehman hun ai ahl-e-mahfil
charagh-e-sahar hun bujha chahta hun

bhari bazm mein raaz ki baat kah di
baDa be-adab hun saza chahta hun - Allama Iqbal

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