कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई उम्मीद बर नहीं आती !कोई सूरत नज़र नहीं आती !!
मौत का एक दिन मुअय्यन है !
नींद क्यों रात भर नहीं आती !!
आगे आती थी हाल-ए-दिल पर हसी !
अब किसी बात पर नहीं आती !!
जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद !
पर तबियत इधर नहीं आती !!
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ !
वरना क्या बात कर नहीं आती ?
क्यों न चीखू कि याद करते है !
मेरी आवाज़ गर नहीं आती !!
दाग़-ए-दिल गर नज़र नहीं आता !
बू भी ऐ चारागर नहीं आती !!
हम वहा है जहाँ से हमको भी !
कुछ हमारी खबर नहीं आती !!
मरते है आरजू में मरने की !
मौत आती है पर नहीं आती !!
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब !
शर्म तुमको मगर नहीं आती ! - मिर्ज़ा ग़ालिब
मायने
मुअय्यन = नियत, सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद = संयम तथा उपासना, चारागर = चिकित्सक
koi ummid bar nahin aati
koi ummid bar nahin aatikoi surat nazar nahin aati
mout ka ek din muayyan hai
nind kyo rat bhar nahin aati
aage aati thi hal-e-dil par hansi
ab kisi bat par nahin aati
janta hun sawab-e-taat-o-zohad
par tabiyat idhar nahin aati
hai kuch aisi hi baat jo chup hun
warna kya baat kar nahin aati ?
kyo n cheekhu ki yaad karte hai
meri aawaz gar nahin aati
Daagh-e-dil gar nazar nahin aata
Boo bhi ae charagar nahin aati
ham waha hai jaha se hamko bhi
kuch hamari khabar nahin aati
marte hai aarzoo me marne ki
mout aati hai par nahin aati
kaba kis muh se jaoge ghalib
sharm tumko magar nahin aati - Mirza Ghalib
शुक्रिया , एक बार फिर ग़ालिब की गली घूम आए ।
बहुत शुक्रिया आपका आपने मेरे ब्लॉग को विसिट किया वैसे अब मै भी आपकी राय पर हमारीवाणी पर पंजीकृत हो गया हू