ख़्वाब इन आँखों का कोई चुराकर ले जाए
ख़्वाब इन आँखों का कोई चुराकर ले जाएक़ब्र के सूखे हुए फूल उठाकर ले जाए
मुन्तज़िर फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कब से
कोई झोंके की तरह आये उड़ा कर ले जाए
ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी
जो हथेली पे रची मेहँदी छुड़ाकर ले जाए
मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझको
ज़िंदगी अपनी किताबों में छुपाकर ले जाए
ख़ाक इंसाफ़ है इन अंधे बुतों के आगे
रात थाली में चराग़ों से सजाकर ले जाए
उनसे ये कहना मैं पैदल नहीं आने वाला
कोई बादल मुझे काँधे पे बिठाकर ले जाए - बशीर बद्र
khwab in aankho se ab koi churakar le jaye
khwab in aankho se ab koi churakar le jayeqabr ke sukhe hue phool uthakar le jaye
muntzir phool me khushboo ki tarah hu kab se
koi jhoke ki tarah aaye, udakar le jaye
ye bhi pani hai magar aankho ka aisa pani
jo hatheli se rachi mehandi chhudakar le jaye
mai mohabbat se mahkata hua khat hu, mujhko
zindagi apni kitabo me chupakar le jaye
khaq insaaf hai nabina buto ke aage
raat thali me charago ko sajakar le jaye
unse kahna ki mai paidal nahi aane wala
koi badal mujhe kandhe pe bithakar le jaye- Bashir Badr
आभार बशीर बद्र साहब की रचना पढ़वाने का.
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
लाजवाब गज़ल ......