हर कविता मुकम्मल होती है - निदा फ़ाज़ली

हर कविता मुकम्मल होती है लेकिन वो कलम से कागज पर जब आती है थोड़ी सी कमी रह जाती है

हर कविता मुकम्मल होती है

हर कविता मुकम्मल होती है
लेकिन वो कलम से
कागज पर जब आती है
थोड़ी सी कमी रह जाती है

हर प्रीत मुकम्मल होती है
लेकिन वो गगन से
धरती पर जब आती है
थोड़ी सी कमी रह जाती है

हर जीत मुकम्मल होती है
सरहद से वो लेकिन
आँगन में जब आती है
थोड़ी सी कमी रह जाती है

फिर कविता नई
फिर प्रीत नई
फिर जीत नई ... बहलाती है
हर बार मगर लगता है युही
थोड़ी सी कमी रह जाती है - निदा फ़ाज़ली


har kavita mukammal hoti hai

har kavita mukammal hoti hai
lekin wo kalam se
kagaj par jab aati hai
thodi si kami rah jaati hai

har preet mukammal hoti hai
lekin wo gagan se
dharti par jab aati hai
thodi si kami rah jaati hai

har jeet mukammal hoti hai
sarhad se wo lekin
aangan me jab aati hai
thodi si kami rah jati hai

fir kavita nai
fir preet nai
fir jeet nai... bahlaati hai
har baar magar lagta hai yuhi
thodi si kami rah jati hai - Nida Fazli

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