अक्से-खुशबु हूँ, बिखरने से न रोए कोई - परवीन शाकिर

अक्से-खुशबु हूँ, बिखरने से न रोए कोई, और बिखर जाऊ तो मुझको न समेटे कोई !

अक्से-खुशबु हूँ, बिखरने से न रोए कोई

अक्से-खुशबु हूँ, बिखरने से न रोए कोई,
और बिखर जाऊ तो मुझको न समेटे कोई !

काँप उठती हूँ मै यह सोचकर तन्हाई में
मेरे चेहरे पे तेरा नाम न पढ़ ले कोई !

जिस तरह ख्वाब मेरे हो गए रेजा-रेजा,
इस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई !

अब तो इस राह से वो शख्स गुजरता भी नहीं,
अब किस उम्मीद पे दरवाजे से झाके कोई !

कोई आह्ट, कोई आवाज, कोई चाह नहीं
दिल की गलिया बड़ी सुनी है, आए कोई ! -परवीन शाकिर


akse-khushbu hu, bikhrane se n roye koi

akse-khushbu hu, bikhrane se n roye koi
aur bikhar jaau to mujhko n samete koi

kaanp uthti hun mai yah sochkar tanhai me
mere chehre pe tera naam n padh le koi

jis tarah khwab mere ho gaye reza-reza
is tarah se n kabhi tut ke bikhre koi

ab to is raah se wo shakhs gujrata bhi nhi
ab kis ummid pe darwaje se jhake koi

koi aahat, koi aawaj, koi chah nahi
dil ki galiya badi suni hai, aaye koi - Parveen Shakir

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