हवन - श्रीकांत वर्मा

हवन - श्रीकांत वर्मा |  चाहता तो बच सकता था मगर कैसे बच सकता था जो बचेगा कैसे रचेगा

हवन - श्रीकांत वर्मा

चाहता तो बच सकता था
मगर कैसे बच सकता था
जो बचेगा
कैसे रचेगा

पहले मैं झुलसा
फिर धधका
चिटखने लगा

कराह सकता था
मगर कैसे कराह सकता था
जो कराहेगा
कैसे निबाहेगा

न यह शहादत थी
न यह उत्सर्ग था
न यह आत्मपीड़न था
न यह सज़ा थी
तब
क्या था यह

किसी के मत्थे मढ़ सकता था
मगर कैसे मढ़ सकता था
जो मढ़ेगा कैसे गढ़ेगा।
- श्रीकांत वर्मा


Hawan

chahta to bach sakta tha
magar kaise bach sakta tha
jo bachega
kaise rachega

pahle main jhulsa
phir dhadhka
chitakhne laga

karah sakta tha
magar kaise karah sakta tha
jo karahega
kaise nibahega

na ye shahadat thi
na ye utsarg tha
na ye atmapidan tha
na ye saza thi
tab
kya tha ye

kisi ke matthe madh sakta tha
magar kaise madh sakta tha
jo madhega kaise gadhega
- Shrikant Verma

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